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तरल गुड़ को राब या काकवी भी कहते हैं। चाशनी को ठोस गुड़ की अपेक्षा कम पकाकर (105 डिग्री से0ग्रे0 तापक्रम पर) उतार लेते हैं। खाण्डसारी बनाने के लिये पहले तरल गुड़ ही बनाया जाता है। तरल गुड़, ठोस गुड़ की तुलना में अधिक पौष्टिक होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका उपयोग रोटी के साथ खाने में भी किया जाता है। |
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कुल गुड़ उत्पादन का लगभग 5 से 8 प्रतिशत भाग पाउडर गुड़ अथवा शक्कर के रूप में बनाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहॉं चीनी की उपलब्धता में कठिनाई होती है वहॉं आज भी लोग पाउडर गुड़ का प्रयोग करते हैं। ठोस गुड़ की तुलना में इसकी कीपिंग क्वालिटी अधिक होने के कारण इसको अधिक पसंद किया जाता है। चाशनी को ठोस गुड़ की तुलना में कुछ अधिक (118–122 डिग्री से0ग्रे0 तापक्रम तक) पकाया जाता है। |
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गुड़ उत्पादन में गन्ने की जातियों का महत्व
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साधारणतया किसी भी प्रजाति के गन्ने का गुड़ बनाया जा सकता है किन्तु गुड़ की मात्रा व गुणवत्ता की दृष्टि से प्रत्येक जाति समान नहीं होती है। कुछ जातियॉं ऐसी हैं जो गुड़ उत्पादन की दृष्टि से तो अच्छी होती हैं किन्तु उनसे निर्मित गुड़ की कीपिंग क्वालिटी कम होती है जबकि कुछ जातियॉं ऐसी भी हैं जिनसे गुड़ उत्पादन तो कम होता है किन्तु उनसे बना गुड़ अधिक स्वादिष्ट व भण्डारण हेतु अधिक उपयुक्त होता है।
उ0प्र0 गन्ना शोध परिषद् द्वारा प्रदेश के विभिन्न अंचलों में उत्तम गुड़ उत्पादन हेतु उपयुक्त गन्ना प्रजातियों का चयन करने के उद्देश्य से विगत वर्षों में अनेक जातीय परीक्षण किये गये उसमें गुड़ न्यादर्श तैयार कर उनका भौतिक, रासायनिक विश्लेषण किया गया। गुड़ उत्पादन हेतु उपयुक्त गन्ना प्रजातियों के चयन की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। वर्तमान में जो प्रजातियॉं उत्तम गुड़ उत्पादन हेतु उपयुक्त पायी गयी हैं उनका विवरण निम्नवत् है :– |
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शीघ्र पकने वाली प्रजातियॉं
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को0 0238,को0 0118,को0शा0 8436,को0शा0 88230, 96268,को0शा0 08272, को0से0 98231 एवं को0से0 01235, को0से0 03234 एवं यू0 पी0 05125 |
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मध्य देर से पकने वाली प्रजातियॉं
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को0शा0 767, 8432, 96269, 96275,97264, 98259, 99259,07250,08279 ,08276, यू0पी0 0097, को0से0 95422, को0से0 01434. |
गन्ना पेराई सत्र के प्रारम्भ में अर्थात सितम्बर के अन्त से नवम्बर तक की अवधि में यदि गुड़ बनाना हो तो शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की सर्वप्रथम पेड़ी फिर शरद् गन्ना प्रयोग करना चाहिये। माह जनवरी से मार्च तक की अवधि में गुड़ बनाने हेतु मध्य देर से पकने वाली प्रजातियॉं गुड़ बनाने हेतु उपयुक्त समझी जाती हैं। |
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