उत्तर भारत में गन्ना खेती को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण से गन्ने पर शोध हेतु वर्ष 1912 में शाहजहांपुर में एक अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई, जिसे वर्ष 1976 में एक स्वशासी संस्था के रूप में उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद के नाम से पुनर्गठित किया गया। यह संस्था देश के गन्ना कृषकों एवं चीनी उद्योग के उत्तरोत्तर विकास हेतु निरंतर सतत प्रयासशील है।
शोध परिषद का मुख्य उद्देश्य गन्ना खेती के विभिन्न पहलुओं पर शोध एवं सुझाव देना, क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुरूप अधिक उपज व शर्करा युक्त रोग-रोधी नवीन गन्ना किस्मों का विकास करना, प्रशिक्षण के माध्यम से गन्ना कृषकों एवं गन्ना उद्योग से जुड़े कर्मियों को गन्ना खेती के नवीन आयामों व विधाओं से परिचित/प्रशिक्षित कराना है।
शोध परिषद द्वारा वर्ष 1912 से अब तक गन्ने की कुल 237 किस्मों का विकास कर देश के चीनी उद्योग के उत्थान में अहम योगदान दिया गया है। हाल के वर्षों में विकसित CoS 17231, CoS 18231, CoS 13235, CoSe 08452, U.P 05125, अगेती किस्मों के साथ गन्ने की सामान्य किस्में जैसे CoS 09232, CoS 12232 और CoSe 01434 विभिन्न क्षेत्रीय जलवायु दशाओं में और कृषकों के लिए उपयोगी पाई गई हैं।
गन्ना खेती न केवल चीनी उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि हाल के वर्षों में सरकार द्वारा इथेनॉल ब्लेंडिंग को प्रोत्साहित करने की योजना के दृष्टिकोण से पेट्रोल के साथ मिलाने हेतु इथेनॉल उत्पादन के लिए भी महत्वपूर्ण फसल है।
उल्लेखनीय है कि 2022-23 में देश में 153 करोड़ लीटर इथेनॉल का उत्पादन संभव हो सका, जो वर्ष 2016-17 में मात्र 42 करोड़ लीटर था। इथेनॉल न केवल हरित धन के रूप में कार्य करता है, बल्कि यह कच्चे तेल के आयात पर खर्च की जाने वाली विदेशी मुद्रा की भी बचत कर रहा है।
नई गन्ना किस्मों के बीज गन्ने का उत्पादन व वितरण करने वाले सक्रिय कृषकों का पंजीकरण भी अब शोध परिषद में किया जा रहा है, जिससे अन्य गन्ना कृषकों को प्रमाणित एवं गुणवत्तापूर्ण बीज की उपलब्धता उपयुक्त मूल्य पर स्थानीय स्तर पर सुलभ हो रही है।
नयी किस्मों के मिनी सीड कट के पारदर्शी वितरण हेतु मिनी सीड कट की ऑनलाइन बुकिंग की जा रही है। ड्रिप सिंचाई और वैकल्पिक नाली में सिंचाई से लगभग 40-60% सिंचाई के पानी की बचत होती है, जिससे भूजल के दोहन में कमी आएगी। इससे लागत में भी कमी संभव होगी तथा गन्ना और चीनी की उत्पादकता में भी आवश्यक वृद्धि होगी।
ड्रिप सिंचाई से न केवल पानी की बचत होती है, बल्कि इससे उपज में भी 20-25% की वृद्धि होती है। सरकार की ओर से छोटे और सीमांत किसानों को ड्रिप सिंचाई लागत का 90% और अन्य किसानों को 80% तक अनुदान की व्यवस्था से यह अत्यंत कम लागत पर किसानों को उपलब्ध है और किसानों को इसका लाभ लेना चाहिए।
गन्ना किसानों को अपनी कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु ड्रिप सिंचाई, फसल अवशेष प्रबंधन, अंतः फसली खेती, जैविक उर्वरक एवं जैविक पेस्टिसाइड के उपयोग के महत्व से परिचित कराने हेतु एक दिवसीय संगोष्ठी कार्यक्रम भी गन्ना विभाग के निर्देशन में संपन्न कराया जा रहा है।
इस प्रकार गन्ना शोध एवं गन्ना विकास के सभी पहलुओं पर निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। आशा है कि गन्ना किसान एवं चीनी मिलों का दीर्घकालीन हित में शोध परिषद निरंतर अपना योगदान निभाता रहेगा।