गन्ना किस्मों की आनुवंशिक शुद्धता के अनुरक्षण तथा रोग-कीट रहित बीज उत्पादन हेतु टिशू कल्चर एक प्रभावी तकनीक है जिससे परंपरागत विधि की तुलना में कम समय में अधिक पौधों का उत्पादन किया जा सकता है।
उ0प्र0 गन्ना शोध परिषद्ए शाहजहॉंपुर में नवीन गन्ना किस्मों का टिशू कल्चर विधि द्वारा संवर्धन किया जाता है जिसका उद्देश्य त्वरित गति से कृषको को नवीन किस्म का बीज उपलब्ध कराना है।
वर्तमान में संस्थान द्वारा टिशू कल्चर विधि से को0शा0 13235, को0 लख0 14201 तथा को0 15023 किस्मों का संवर्धन किया जा रहा है।
बीज गन्ना सम्वर्धन हेतु आजकल टिशूकल्चर (ऊतक सम्वर्धन) तकनीक लोगों का ध्यान आकृष्ट कर रही है। इस तकनीक द्वारा कम समय में अधिक बीज उत्पादन की प्रचुर सम्भावनायें हैं।
बीज गन्ना सम्वर्धन हेतु शूट टिप एवं मेरिस्टेम भाग उपयुक्त होते हैं। इनका 0.1 प्रतिशत मरक्यूरिक क्लोराइड के घोल से सतही विसंक्रमण करने के उपरान्त एम0एस0 कल्चर मीडीयम पर इनाकुलेट कर दिया जाता है। मीडीयम में साइटोकाइनिन, आक्जीन एवं जिबै्रलिन की उपस्थिति आवश्यक है। मातृ–पौध की वृद्धि के अनुसार लगभग 45-60 दिनों पश्चात् इन्हें शूट मल्टीप्लीकेशन द्रव मीडीयम पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है जहॉं लगभग 15 दिन में नये शूट विकसित होकर पौधों का गुच्छा बना लेते हैं। इन गुच्छों से पौधों को 2–3 के समूह में तोड़कर अलग–अलग कर लेते हैं तथा पुन: अलग–अलग जैमबाटल्स में फ्रेश मीडियम पर स्थानान्तरित कर लेते हैं। यह क्रिया प्रत्येक 12 से 15 दिन के अन्तराल पर दोहरायी जाती है। इस प्रकार एक एक्सप्लान्ट से 6 माह में लगभग एक लाख पौधे विकसित कर लिये जाते हैं। जड़ विहीन पौधों में जड़ विकसित करने हेतु 10–15 पौधों के समूह में उन्हें रूटिंग मीडीयम पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है। आमतौर पर 12-15 दिनों में पर्याप्त जड़ विकसित हो जाती है।
टिशूकल्चर तकनीक द्वारा बीज गन्ना सम्वर्धन
जड़ विकसित होने के पश्चात पौधों को बाटल से निकालकर धो लेते हैं तथा छिद्रयुक्त पालीथीन (2 x 3 इंच) में भरे मृदा मिश्रण (मिट्टी : कम्पोस्ट : रेत, समभाग) में लगाकर ग्रीन हाउस में हार्डेनिंग हेतु रख देते हैं। एक माह पश्चात पौधों को प्रक्षेत्र पर 45 x 90 सेमी की दूरी पर प्रत्यारोपित कर तत्काल पानी लगा देना चाहिये। इस प्रकार एक एकड़ हेतु लगभग 9,500 पौधों की आवश्यकता होती है।
ऊत्तक सम्वर्धन पद्धति द्वारा नवीन विकसित गन्ना प्रजातियों का तीव्र प्रसार किया जा सकता है। उत्पादित पौधे प्राय: रोगरहित, कीट रहित होते हैं तथा किसी नवीन प्रजाति के तीव्र प्रसार होने के कारण इससे प्रक्षेत्र पर अपेक्षाकृत अधिक वर्षो तक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। टिशूकल्चर विधि द्वारा एक गन्ने से विकसित किये गये एक लाख पौधों से लगभग 4 हेक्टेयर ब्रीडर सीड नर्सरी स्थापित की जा सकती है जिससे आगामी वर्षो में लगभग 40 हेक्टेयर फाउन्डेशन सीड नर्सरी तथा 400 हेक्टेयर सर्टीफाइड सीड नर्सरी स्थापित की जा सकती है। इससे 4,000 हेक्टेयर गन्ना क्षेत्रफल आच्छादित होगा जबकि परम्परागत विधि द्वारा एक गन्ने से इतने ही समय में मात्र 150 हेक्टेयर क्षेत्रफल आच्छादित किया जा सकता है।