नाली में दो आंख के उपचारित 10 पैडे़/मीटर की दर से क्षैतिज/सीढ़ीनुमा (होरिजेन्टल) या दोहरी पंक्ति में इस प्रकार डालें कि उनकी आखें अगल–बगल में हो। दीमक व अंकुर बेधक नियंत्रण हेतु पैड़ों के ऊपर रीजेन्ट 20 कि0ग्रा0 या लिण्डेन 20 कि0ग्रा0 या सेवीडाल 25 कि0ग्रा0 या फोरेट 25 कि0ग्रा0/हे0 का बुरकाव या क्लोरपाइरीफास 5 ली0/हे0 को 1875 लीटर पानी के साथ पैड़ों पर छिडकाव करना। पैड़ों की ढकाई सावधानी पूर्वक इस प्रकार करे कि पैड़ों के ऊपर 2–3 से0मी0 से अधिक मिट्टी न पडे़। देर से बुवाई करने पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 से 100 से0मी0 रखी जाये।
गन्ना जमाव
एक सप्ताह में जमाव शुरू हो जाता है तथा एक माह में पूर्ण हो जाता है। जमाव 60-70 प्रतिशत तक हो जाता है जबकि सामान्य विधि में 40–50 प्रतिशत तक ही होता है। जमाव अधिक व समान रूप से होने तथा पैड़ों को क्षैतिज रखने से नाली में दोहरी पंक्ति की तरह जमाव दिखता है तथा कोई रिक्त स्थान नहीं होता और पेड़ी पैदावार भी पौधा गन्ने के समान होती है।
सिंचाई
1. |
बुवाई के समय नमी की कमी या देर बसन्त की दशा में पहली सिंचाई बोवाई के तुरन्त बाद करें। |
2. |
पर्याप्त नमी की दशा में बुवाई की गयी हो तो पहली सिंचाई 2–3 दिन पर भी कर सकते हैं। |
3. |
मिट्टी के अनुसार ग्रीष्मकाल में सप्ताह के अन्तराल पर सिंचाई करना आवश्यक है। |
4. |
वर्षाकाल में 20 दिन तक वर्षा न होने की दशा में सिंचाई अवश्य करें। नाली में सिंचाई करने से प्रति सिंचाई 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है। |
5 |
नाली में सिंचाई करने से केवल 2.5–3 घण्टा प्रति हे0 का समय लगता है जिससे ईंधन/डीजल की बचत होती है। |
खरपतवार नियंत्रण
नाली में गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण करना कठिन है इसलिए जमाव पूर्व मेट्रीव्युजीन 1.450 कि.ग्रा./हे0 1000 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव तथा जमाव बाद मेट्रीव्युजीन 725 ग्राम/हे0 तथा 2,4–डी सोडियम साल्ट 1.25 कि0ग्रा0/हे0 को 1000 लीटर पानी में आवश्यकतानुसार 30 दिन के अन्तराल पर दो बार छिडकाव करना चाहिए । छोटे कृषक खुरपी से भी खरपतवार नियंत्रण कर सकते हैं।
मिट्टी चढ़ाना
जून के अन्तिम सप्ताह में बैल चालित डेल्टा या टे्रन्च ओपनर से गन्ने की थानों में जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना चाहिए। इससे नाली की जगह पर मेड़ व मेड़ की जगह पर नाली बन जाती है जो जल निकास का काम करती है।
गन्ना बंधाई
इस विधि में अपेक्षाकृत गन्ने लम्बे व मोटे होते हैं जिसके कारण वर्षा काल में गन्ना गिरने की सम्भावना रहती है। अत: जुलाई के अन्तिम सप्ताह में पहली, बंधाई अगस्त में दूसरी व आवश्यकतानुसार तीसरी कैंची बंधाई करनी चाहिए।
फसल सुरक्षा
अप्रैल/मई में अंकुरबेधक व चोटीबेधक कीटों से प्रभावित गन्नों को काट कर निकालना तथा जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह के बीच नमी होने की दशा में गन्ने की जड़ों के पास 30 कि0ग्रा0/हे0 की दर से फ्यूराडान का उपयोग करना।
अन्त:फसल
1. |
दो पंक्तियों के मध्य दूरी अधिक होने के कारण अन्त: फसलों की उपज अच्छी होती है। |
2. |
गन्ने की बुवाई नाली में तथा अन्त: फसलों की बुवाई मेड़ों पर होती है जिसके कारण प्रतियोगिता बहुत कम होती है। इस विधि में आलू की 1 या 2 पंक्ति, लहसुन की 3-4 पंक्ति, मटर व राजमा की 2–2 पंक्ति, लाही 2पंक्ति, गेहू 3-4 पंक्ति आसानी से ली जा सकती हैं जो गन्ने की उपज पर कोई दुष्प्रभाव नही डालती। |
ट्रेन्च विधि के लाभ
1. |
जमाव 60-70 प्रतिशत तथा व्यॉत मृत्यु दर अधिकतम् 8 प्रतिशत जबकि सामान्य विधि में 35–40 प्रतिशत। |
2. |
प्रति सिंचाई 60 प्रतिशत पानी की बचत। |
3. |
उर्वरकों के सदुपयोग क्षमता में वृद्धि। |
4. |
गन्ना अपेक्षाकृत कम गिरता है। |
5. |
मिल योग्य गन्ने एक समान मोटे व लम्बे होते हैं जिसके कारण परम्परागत विधि की तुलना में 35–40 प्रतिशत अधिक उपज व 0.5 इकाई अधिक चीनी परता प्राप्त होती है। |
6. |
अन्त: फसलों से गन्ने की प्रतिस्पर्धा बहुत कम होती है जिसके कारण दोनों फसलों की उपज अच्छी होती है। |
7. |
सामान्य विधि की तुलना में इस विधि से पेड़ी गन्ना की पैदावार 15–25 प्रतिशत अधिक होती है। |
8. |
भूमिगत कीट, ह्वाइट ग्रव एवं दीमक का आपतन कम होता है। |
9. |
इस विधि द्वारा गन्ने के बाद गन्ना के कुप्रभाव को कम किया जा सकता है क्योंकि पेड़ी के बाद जहॉं गन्ना नहीं होता है वहॉं पर गन्ने की बुवाई की जाती है। |
10. |
उत्तर भारत में उपज क्षमता व वास्तविक उपज में 35–40 प्रतिशत का अन्तराल है जिसे इस विधि द्वारा आसानी से पूरा किया जा सकता है। |
11. |
क्षेत्रफल में बिना वृद्धि किये गन्ने की उत्पादकता बढ़ाने में यह विधि किसानों के लिए सुलभ एवं उपयुक्त विधि है। |
ट्रेन्च मैथड एवं परम्परागत विधि द्वारा गन्ना खेती उत्पादन लागत रू प्रति हेक्टेयर का तुलनात्मक अध्ययन (2019-2021)
क्र0सं0 |
विवरण |
ट्रेन्च मैथड |
परम्परागत विधि |
1. |
खेत की तैयारी |
9,620 |
9,620 |
2. |
बीज व बीज तैयारी |
33,850 |
26,000 |
3. |
बुवाई |
5,030 |
3,800 |
4. |
सिंचाई |
29,890 |
35,000 |
5. |
उर्वरक व उसका उपयोग |
22,718 |
22,000 |
6. |
फसल सुरक्षा |
10,069 |
10,069 |
7. |
कर्षण क्रियायें |
49,340 |
56,000 |
8. |
कटाई |
32,000 |
25,000 |
9. |
देख-रेख |
22,000 |
22,000 |
10. |
योग |
2,14,517 |
2,09,489 |
परम्परागत विधि की तुलना में ट्रेन्च मैथड की उपयोगिता
क्र0 सं0 |
विवरण |
परम्परागत विधि |
ट्रेन्च मैथड |
1. |
जमाव (प्रतिशत) |
30-35 |
60-70 |
2. |
ब्यॉंत मृत्युदर (प्रतिशत) |
30-40 |
10-12 % |
3. |
सिंचाई की उपयोग क्षमता |
- |
प्रति सिंचाई 60% पानी की बचत |
4. |
उर्वरक की उपयोग क्षमता |
निम्न |
बहुत अधिक |
5. |
गन्ना गिरना |
बहुत अधिक |
बहुत कम |
6. |
उत्पादकता (टन/हे0) |
80-90 |
110-125 |
7. |
लाभ (रु0/हे0) |
50,000-60,000 |
79,000 |
8. |
अन्त: फसलों से प्रतिस्पर्धा |
उच्च |
कम |
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